अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस और भारतीय नारी


बुलन्दशहर : गुलावठी भारत भूमि वीरों की भूमि है मातृ शक्ति के रूप में कल्पना चावला ने जो विकास और तकनीक की दिशा हमारे देश को प्रदान की है वह भारत में ही नहीं अपितु विश्व में अनोखी पहल है पाश्चात्य दुनिया में तो महिलाओं को भौतिकता से जोड़ा गया है किंतु हमारे भारत में महिलाओं को मातृ शक्ति के रूप में जाना जाता है हमारे समाज में महिलाओं की महिमा वेदों में इस प्रकार बताई है
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।
कि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं और जहां उनका अपमान होता है वह जगह नर्क समान होती है
नारी नहीं है बेचारी नारी में है शक्ति सारी जहां होता नारी का अपमान वह जगह है नर्क समान।
पुराने समय में तो कोई भी धार्मिक कार्य बिना नारी के संभव ही नहीं था नारी को महालक्ष्मी मां सरस्वती मां दुर्गा का दर्जा दिया जाता था आज भी नवरात्रि उसका साक्षात प्रमाण है फिर ऐसा क्या हुआ कि नारी की दशा दयनीय होती चली गई ।कहां जाता है कि महाभारत युद्ध के पश्चात् समाज में असमानता फैल गई ।वहीं से स्त्री के पतन की कहानी आरंभ हो चुकी थी पुरुष के साथ चलने वाली स्त्री पुरुष की संपत्ति के रूप में जानी जाने लगी उसके सभी मूल अधिकार छीन लिए गए और वह पुरुष के अधीन होकर रह गई उसके बाद जब अंग्रेज और मुगल आए तो पर्दा प्रथा बाल विवाह सती प्रथा आदि  कुरीतियां भी आ गई फिर संघर्ष शुरू हुआ अपनी खोई हुई गरिमा को पाने के लिए और समाज में बहुत ही महान वह अनुभूतियों का उदय हुआ महारानी लक्ष्मी बाई जिन्होंने की अंग्रेजों से लोहा लिया महारानी जीजाबाई जिन्होंने शिवाजी जैसे वीर योद्धा को जन्म दिया इनका समाज हमेशा रैली रहेगा
नारी का त्याग और समर्पण ही है जो समाज को बांधे हुए हैं
आधुनिक युग की महिला पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रही है फिर वह क्षेत्र डॉक्टरी इंजीनियरिंग वकालत सेना राजनीति व्यवसाय कोई भी हो।